जब तक लद्दाख हिंसा की निष्पक्ष जांच नहीं होती, जेल में ही रहूंगा

हुसैन अफसर
हुसैन अफसर

सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक, जिन्हें हाल ही में लेह हिंसा के बाद गिरफ्तार किया गया था, ने जोधपुर सेंट्रल जेल से एक भावुक और संघर्षपूर्ण पत्र लिखा है। उन्होंने अपने पत्र में लद्दाखवासियों से शांति बनाए रखने की अपील की है और कहा है कि जब तक चार मृतकों की स्वतंत्र न्यायिक जांच नहीं होती, वे जेल में ही रहना पसंद करेंगे।

“मैं मानसिक और शारीरिक रूप से बिल्कुल स्वस्थ हूं” – सोनम का आत्मविश्वास

पत्र की शुरुआत में सोनम वांगचुक ने स्वास्थ्य को लेकर उठ रही चिंताओं का जवाब दिया। उन्होंने लिखा:

“मैं मानसिक और शारीरिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ हूं। आप सबकी प्रार्थनाओं और शुभकामनाओं के लिए दिल से धन्यवाद।”

उनकी पत्नी गीतांजलि सोनम, स्थानीय नेता और वकील लगातार उनकी सेहत को लेकर चिंतित थे।

“हिंसा की स्वतंत्र न्यायिक जांच तक जेल में रहूंगा”

वांगचुक ने पत्र में साफ तौर पर लिखा कि चार लोगों की मृत्यु और दर्जनों की गिरफ्तारी के मामले में अगर निष्पक्ष न्यायिक जांच नहीं होती, तो वे रिहा होने को तैयार नहीं।

“यह मेरा व्यक्तिगत संघर्ष नहीं है, यह लद्दाख की आत्मा की आवाज़ है।”

“संविधान के दायरे में छठी अनुसूची और राज्य का दर्जा चाहिए”

वह एक बार फिर अपनी पुरानी और स्पष्ट मांग पर कायम दिखे- लद्दाख को छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा, राज्य का दर्जा और लद्दाख के संसाधनों की रक्षा। उन्होंने KDA (कोर ग्रुप) को हर फैसले में समर्थन देने की बात भी दोहराई।

“शांति और एकता बनाए रखें, अहिंसा ही रास्ता है”

वांगचुक ने लद्दाख की जनता से गांधीवादी ढंग से संघर्ष जारी रखने की अपील की:

“मैं आप सभी से अपील करता हूं कि शांति और एकता बनाए रखें। हिंसा से कभी न्याय नहीं मिला, लेकिन संयम से बदलाव ज़रूर आया है।”

लेह में सन्नाटा, बाजार बंद, लोग घरों में बंद

लद्दाख में तनावपूर्ण माहौल बना हुआ है:

  • लगातार बाजार बंद

  • घरों से निकलना बंद

  • प्रशासन पर निष्पक्षता को लेकर सवाल

लेकिन सोनम वांगचुक की इस चिट्ठी ने आंदोलन में नई ऊर्जा भर दी है।

सुप्रीम कोर्ट में पत्नी की याचिका, राष्ट्रपति को भी अपील

गीतांजलि सोनम ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है। राष्ट्रपति से रिहाई की गुहार लगाई और मीडिया से सत्य की रिपोर्टिंग की अपील की।

जेल की दीवारों से निकली लोकतंत्र की आवाज़

सोनम वांगचुक की यह चिट्ठी सिर्फ एक कैदी की नहीं, बल्कि एक आंदोलन की आत्मा है। जहां एक ओर सरकारें “विकास” की बात करती हैं, वहीं लद्दाख जैसे इलाके पहचान, संसाधनों और अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं। क्या सोनम वांगचुक की ये चिट्ठी बदलाव की दस्तक है?

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